Eid ul Fitr 2020

ईद ईदुल फितर

Chand Mubarak

ईद मुस्लमानों का एक महत्वपूर्ण त्योहार है । मुसलमानों के बारह महीनों में एक महीने का नाम रमजान है । रमजान का महीना बड़ा ही पवित्र (पाक) माना जाता है । इस्लाम धर्म में पवित्र रमजान के पूरे महीने रोजे अर्थात् उपवास रखने के बाद नया चांद देखने के अवसर पर ईद-उल-फितर का त्योहार मनाया जाता है । यह रोजा खत्म होने के त्योहार के रूप में भी लोकप्रिय है । यह त्योहार रमजान के अंत में मनाया जाता है ।


मुस्लिम समुदाय के लिए यह अवसर खुशी का होता है । फितर शब्द अरबी के ‘फतर’ शब्द से बना । जिसका अर्थ होता है टूटना । फितर शब्द का एक अन्य अर्थ भी होता है जो फितरह शब्द से निकलता है । जिसका अर्थ होता है भीख दान । अन्य इस्लामी त्योहारों की तरह रमजान एक दिन विशेष पर नहीं आता है । इस प्रकार यह पूरा माह ही त्योहारों की तरह होता है । इबादत या प्रार्थना, भोजन और मेल-मिलाप इस त्योहार की प्रमुख विशेषता है । यह इस्लामी केलेंडर का नौवां महीना होता है ।


रसम 
इस दिन की रस्मों में सुबह सबसे पहले नहाना, नए कपड़े पहनना,सुगंधित इत्र लगाना, ईदगाह जाने से पहले खजूर खाना आदि मुख्य है । आमतौर पर पुरुष सफेद कपड़े पहनते है । सफेद रंग पवित्रता और सादगी का प्रतीक है । इस पवित्र दिन पर बड़ी संख्या में मुस्लिम अनुयायी सुबह जल्दी उठकर ईदगाह, जो ईद की विशेष प्रार्थना के लिए एक बड़ा खुला मैदान होता है, में इबादत ओर नमाज अदा करने के लिए इकट्ठे होते हैं ।

नमाज से पहले सभी अनुयायी कुरान में लिखे अनुसार, गरीबों को अनाज की नियत मात्रा दान देने की रस्म निभाते हैं । जिसे फीत्रा देना कहा जाता है । फितर या एक धर्मार्थ उपहार है, जो रोजा खतम होने के उपलब्ध में दी जाती है । इसके बाद इमाम द्वारा ईद की विशेष इबादत खुतबा और दो रकत नमाज अदा करवाई जाती है । ईदगाह में नमाज की व्यवरथा इस त्योहार विशेष के लिए होती है । अन्य दिनों में नमाज मरिजदों में ही अदा की जाती है ।

ईद खुशी का दिन है । यह हमें मिल-जुलकर रहना सिखाती है । ईद की यह शिक्षा ग्रहण कर लेने पर जीवन और भी आनन्दमय हो जायेगा।


ईद उल-फ़ित्र या ईद उल-फितर (अरबी: عيد الفطر) मुस्लमान रमज़ान उल-मुबारक के एक महीने के बाद एक मज़हबी ख़ुशी का त्यौहार मनाते हैं। जिसे ईद उल-फ़ित्र कहा जाता है। ये यक्म शवाल अल-मुकर्रम्म को मनाया जाता है। ईद उल-फ़ित्र इस्लामी कैलेण्डर के दसवें महीने शव्वाल के पहले दिन मनाया जाता है। इसलामी कैलंडर के सभी महीनों की तरह यह भी नए चाँद के दिखने पर शुरू होता है। मुसलमानों का त्योहार ईद मूल रूप से भाईचारे को बढ़ावा देने वाला त्योहार है। इस त्योहार को सभी आपस में मिल के मनाते है और खुदा से अमन-खुशहाली और बरकत के लिए दुआएं मांगते हैं। पूरे विश्व में ईद का त्योहार बहुत ही शौक से मनाया जाता है।

  • ईद क्यों मनाते हैं, कैसे हुई थी इसकी शुरुआत


रमजान का महीना इस्लामिक कैलेंडर में नौवां और सबसे पवित्र महीना माना गया है। इस दौरान अल्लाह की इबादत करते हैं और बिना कुछ खाए पिए रोजे रखते हैं। दसवें महीने शव्वाल की पहली चांद वाली रात ईद की रात होती है,इसे चान्द रात भी कहते हैं। इस चांद को देखे जाने के बाद ही ईद-उल-फितर का ऐलान किया जाता है। इस साल यह चांद 24 मई 2020 को देखा जाएगा।  इस बार ईद का त्योहार भारत में 25 मई 2020 को मनाया जा रहा है। ईद का त्योहार भाईचारे को बढ़ावा देने वाला और बरकत के लिए दुआएं मांगने वाला पर्व है। 

आइए जानते हैं ईद क्यों मनाई जाती है और इस त्योहार की शुरुआत कैसे हुई कुरान के मुताबिक, रजमान के पाक महीने में रोजे रखने के बाद अल्लाह एक दिन अपने बंदों को बख्शीश और इनाम देता है। इसीलिए इस दिन को ईद कहते हैं। बख्शीश और इनाम के इस दिन को ईद-उल-फितर कहा जाता है।

मुसलमान ईद में खुदा का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने महीने भर के उपवास रखने की ताकत (कुव्वत) दी। ईद पर एक खास रकम (ज़कात) गरीबों और जरूरतमंदों के लिए निकाल दी जाती है । नमाज के बाद फित्रा वाजिब है उनके ऊपर जो 52.50 तोला चाँदी या 7.50 तोला सोने का मालिक हो अपने और अपनी नाबालिग़ औलाद का सद्कये फित्र अदा करे जो कि ईद उल फितर की नमाज़ा से पहले करना होता हैपरिवार में सभी लोगों का फितरा दिया जाता है, जिसमें 2 किलो ऐसी चीज दी जाती है, जो प्रतिदिन खाने की हो।
ईद उल-फितर पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सन् 624 ईस्वी में जंग-ए-बदर के बाद मनाया थी। पैगंबर हजरत मोहम्मद ने बद्र के युद्ध में विजय (फतह) प्राप्त की थी। उनके विजयी होने की खुशी में यह त्योहार मनाया जाता है। ईद के दिन मस्जिदों में सुबह की नमाज अदा करने से पहले हर मुसलमान का फर्ज है कि वो दान या जकात दे।
रमजान महीने में रोजे रखने को फर्ज करार दिया गया है। ऐसा इसलिए, ताकि इंसान को भूख-प्यास का अहसास हो सके और वह लालच से दूर होकर सही राह पर चले। रमजान के दिन कई तरह के पकवान बनते हैं, और ईद पर मीठी सेवइयां एक-दूसरे को खिलाते हैं।ईद के दौरान बढ़िया खाने के साथ-साथ नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों को तोहफ़े भी दिये जाते है। शादी के बाद पहली ईद पर ईदी की शक्ल में नऎ जोडे को तोहफ़े दिए जाते हैं, सेवैया इस त्योहार की सबसे अहम पकवान है जिसे सभी छोटे बड़े शौक से खाते हैं और दोस्तों रिश्तेदारों में भेजा जाता है। 
 ईद के ढाई महीने बाद ही ईद-उल-अजहा आती है। ईद-उल-अजहा को बकरीद भी कहा जाता है। ईद-उल-अजहा को ईद-ए-कुर्बानी भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन नियमों का पालन करते हुए कुर्बानी दी जाती है। इस त्योहार की शुरुआत हजरत इब्राहिम से हुई थी।
इस ईद में मुसलमान ३० दिनों 1 माह के बाद पहली बार दिन में खाना खाते हैं कभी कभी ये माह 28 या 29 दिनों का भी होता है।ये माह चान्द के हिसाब से होता है

  • दिन मस्जिदों में सुबह की प्रार्थना से पहले हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वो दान या भिक्षा दे। इस दान को ज़कात उल-फ़ितर कहते हैं।। यह दान दो किलोग्राम कोई भी प्रतिदिन खाने की चीज़ का हो सकता है, मिसाल के तौर पे, आटा, या फिर उन दो किलोग्रामों का मूल्य भी। से पहले यह ज़कात ग़रीबों में बाँटा जाता है।





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